शापित अनिका: भाग १२

रात के करीब आठ बज रहे थे। बिष्ट मैन्शन में डिनर की तैयारी हो रही थी। विमला देवी मिशा को जबरदस्ती किचन का काम करने को बोल रही थी लेकिन मिशा इस बात पर चिढ़ उठी थी।


"क्या मॉम.... फिर से आपका हिटलर वाला रवैया शुरू हो गया?" मिशा गुस्से में फुंफकारते हुये बोली।


"अरे बेटा! अगर रसोई बनानी नहीं आयेगी तो ससुराल वाले क्या कहेंगें?" विमला देवी प्यार से समझाते हुये बोलीं।


"तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे ये कल ही ससुराल जाने वाली हो।" मि. श्यामसिंह हंसते हुये बोले।


"और नहीं तो क्या? और अभी तो मैंनें जस्ट ग्यारहवीं के एग्जाम्स दिये हैं।" मिशा ने भी चिढ़कर कहा- "और दाल- चावल तो बना ही लेती हूं।"


"पर दाल- चावल ही तो पूरी रसोई नहीं होती है।" विमला देवी ने तर्क रखा- "अभी तक तुझे आटा गूंथना और रोटी बनाना नहीं आता। नॉन- वेज का भी एक भी आइटम तू बना नहीं सकती।"


"हां तो कोई जरूरी है कि शादी के बाद खाना मैं ही बनाऊं?" मिशा ने तर्क रखा।


"बेटा! मर्दों के दिल का रास्ता पेट से होकर ही जाता है।" विमला देवी हंसकर बोली- "हमारे घर में नौकर चाकरों की क्या कमी है जो मैं रोज अपने हाथों से खाना बनाती हूं?"


"ऐसे मर्दों का पेट फाड़कर अंतडियां धूप में सुखाने ड़ाल देनी चाहिये।" मिशा भुनभुनाई- "ये सब मर्दों के ढ़कोसले हैं कि औरत बस चूल्हा- चक्की में जुती रहे। खाना औरत बनायेगी। कपड़े- बर्तन औरत करेगी। बच्चों कों, बड़ों को, घर को औरत संभालेगी और गाली भी खायेगी कि दिन भर घर में पड़ी- पड़ी क्या करती हो।"


"वाह, लगता है दीदी किसी फेमिनिस्ट के चक्कर में पड़ गई है।" सिड़ ने बीच में तड़का मारा।


"तू तो चुप ही रह वरना जीभ खींच लूंगी।" मिशा ने पूरा गुबार सिड़ पर उड़ेल दिया- "और गलत क्या कहा मैंनें? कितनी औरतें हैं जो नौकरी करती है लेकिन घर का काम भी उन्हें ही करना पड़ता है। मियां- बीवी दोनों कामकाजी हों, तब भी घर का पूरा काम बीवी को ही क्यों करना पड़ता है?"


मिशा की बात सुनकर मि. श्यामसिंह और विमला देवी चुप हो गये लेकिन आशुतोष जो अब तक चुपचाप मिशा की बात सुन रहा था, बोल पड़ा- "क्यूंकि सेवा सबसे बड़ा धरम कहा गया है।"


अनिका को आशुतोष का तर्क सही नहीं लगा, लेकिन दूसरों के पारिवारिक बहस के बीच बोलना उसे ठीक नहीं लगा। उसने सोचा कहीं सब लोग ये न सोचें कि उसने ये बातें मिशा के दिमाग में ड़ाली है इसलिये चुप ही रही लेकिन मिशा रूठते हुये बोली- "क्या भाई? आप भी इन्हीं का साइड़ ले रहे हो? क्या मैंनें कुछ गलत कहा?"


"तुझे खाना नहीं बनाना तो मत बना लेकिन इस बकवास का क्या मतलब है?" विमला देवी आशुतोष की शह पाकर बोली।


"नहीं मम्मा.... वैसे मिशा की बात भी एक हद तक ठीक है लेकिन...."


"लेकिन क्या?" मिशा और अनिका दोनों ने चौंककर एकसाथ पूछा।


"देखो ये फर्क तो भगवान ने ही बनाया है। अब मुझे ये तो नहीं पता कि तुम लोग मायथोलॉजी में कितना मानते हो लेकिन जानती हो इस पूरी दुनिया को चलाने के लिये सदाशिव, जो कि अर्धनारीश्वर थे, ने खुद को प्रकृति और पुरूष दो भागों में बांट दिया था।" आशुतोष ने कहना शुरू किया तो सब गौर से उसकी बात सुनने लगे- "पुरूष वाला हिस्सा शंकर और प्रकृति वाला भाग आदिशक्ति कहलाया। आदिशक्ति का काम दुनिया को चलाने के लिये ऊर्जा और शक्ति देना है। इन्हीं आदिशक्ति को पार्वती कहते हैं।"


"तो शिव- पार्वती का इन सबसे क्या लेना- देना?" मिशा ने उत्सुक्तावश पूछा।


"आदिशक्ति पूरी दुनिया की ऊर्जा का कारण है। उन्ही की ऊर्जा से जीवन है। यहां तक कि त्रिदेवों की शक्ति और सभी ग्रहों की गति भी उन्हीं से मिलती है। उनकी ताकत का अंदाजा इसी बात से लगा लो कि एक बार उन्होनें भगवान शिव को ही निगल लिया था।" आशुतोष बोला- "लेकिन सबसे शक्तिशाली होकर भी वो भगवान शिव की अनुचरी यानि पीछे चलने वालीं कहलातीं है।"


"मुझे आपके कहने का मतलब ही समझ में नहीं आ रहा।" सिड़ चकराकर बोला।


"देखो हर बार जब कोई मुसीबत आती है, जिसे त्रिदेव भी हल नहीं कर पाते तो वही उस मुसीबत से निजात दिलातीं है। जब अकाल पड़ा तो उन्होनें शाकुम्बरी देवी का रूप धारण कर शाक- पात दिये। भूखों को खाना देने के लिये अन्नपूर्णा बनीं। गरीबों के लिये लक्ष्मी- स्वरूपा हैं। कम अक्ल वालों के लिये सरस्वती हैं और दुष्टों के लिये काली और दुर्गा हैं।" आशुतोष बोला- "और हमारी संस्कृति में औरत को देवी का रूप माना जाता है और उन्हें दुर्गा और लक्ष्मी कहतें हैं इसलिये पुराने जमाने में घर की औरत जो भी पकाती थी उसे अन्नपूर्णा का प्रसाद मानकर खाया जाता था और जैसे जगतजननी दुनिया को पालतीं है उसी तरह उसे परिवार को पालने की जिम्मेदारी देते थे।"


"तो आपका कहना है कि औरत का काम बस चूल्हा- चौका करना ही है?" अनिका ने पूछा।


"नहीं.... बिल्कुल नहीं। मैनें कॉलेज में टॉप किया था और फिर लगातार छः लड़कियों का नम्बर था इसलिये ये कहना बिल्कुल गलत है कि औरतें बस चूल्हा- चौका करने के लिये बनीं हैं।" आशुतोष ने दृढ़ता के साथ अपना पक्ष रखा- "देखो जिस टाइम ये ट्रेडिशन था उस टाइम वैदिक इरा था। उस टाइम पर काम क्या थे? खेती, पशुपालन, शिकार खेलना, मछली पकड़ना, मूर्तियां बनाना, मजदूरी और सिपाहीगिरी तो उस टाइम तक ये रूल ठीक था। अब दिक्कत ये है कि हम लोग वेद- शास्त्रों की अच्छी बातें तो भूल गये हैं लेकिन जिन बातों से मर्दों को फायदा है, उन्हें परंपरा के नाम पर छाती से चिपकाये घूमते हैं।"


"तो इसका सोल्यूशन क्या है?" सिड़ ने पूछा।


"अभी मिशा ने बताया तो.... जो ऐसा सोचते हैं उनका पेट चीरकर अंतडियां धूप में सुखाने ड़ाल दो।" कहते हुये आशुतोष ने ठहाका लगाया। बाकी लोगों ने भी इसमें उसका साथ दिया।


* * *



रात के करीब दस बज रहे थे। सब लोग खाने के लिये डायनिंग टेबल पर थे, लेकिन आशुतोष का कहीं अता- पता नहीं था। मिशा इस बात पर कुढ़ रही थी कि उसी के कहने पर उसने सारा खाना अकेले तैयार किया और अब उसका ही कहीं पता नहीं था।


"सिड़ जाकर उनको बुलाकर लाओ नहीं तो सच में उसका पेट फाड़कर अंतडियां निकाल लूंगी।" मिशा धम्म से कुर्सी पर बैठते हुये बोली।


"तुम रुको, मैं जाती हूं...." अनिका सिड़ को रोककर हॉल से निकली। उसे अब- तक ये तो पता लग ही गया था कि इस वक्त आशुतोष कहां मिलेगा। वो सीधे छत की तरफ बढ़ी, जहां एक किनारे पर आशुतोष रेलिंग पर हाथ टिकाये अनंत आकाश को देख रहा था।


"खाना बन गया?" उसने बिना पीछे मुड़े पूछा।


"हां और तुम्हारे न आने पर मिशा बहुत गुस्सा कर रही है।" अनिका मुस्कुराकर बोली- "वैसे तुम काफी परेशान लग रहे हो?"


"हां, लेकिन वो छोड़ो, चलो खाने चलते हैं।" कहकर आशुतोष आगे बढ़ा तो अनिका ने टोका- "ये अनामिका कौन है?"


"दिन मैं बताया तो.... मेरे ख्यालों की राजकुमारी है, जिससे मैं प्यार करता हूं।" आशुतोष मुस्कुराया।


"लेकिन उसका कोई नाम- वाम तो होगा? तुम उससे दुबारा मिले तो हो ही नहीं सकता कि तुम्हें उसका असली नाम नहीं पता।"अनिका झुंझलाकर बोली।


आशुतोष को अनिका की बैचेनी महसूस हो रही थी लेकिन उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि उसे बता सके कि उसकी अनामिका और कोई नहीं वो खुद है। बोला- "नाम तो पता है, लेकिन बता नहीं सकता। पहले उसके दिल की बात जान लूं, फिर बताऊंगा।"


"तुम्हारी मर्जी...." अनिका ने दोनों कंधे उचकाये और आगे बढ़ गई। आशुतोष ने भी उसका अनुसरण किया।


* * *




हॉल में सब लोग आशुतोष और अनिका का इंतजार कर रहे थे। जैसे ही दोनों डायनिंग टेबल पर बैठे, मिशा ने खुशी- खुशी आशुतोष को हर आइटम परोस दी। दाल- चावल, जली सी रोटी, खीर और आलू- बैंगन की सब्जी।


"यार मेरा तो बस दाल- चावल खाने का मन कर रहा है।" आशुतोष ने कहा तो मिशा ने आंखें तरेरीं।


"एक भी दाना वेस्ट हुआ तो जान ले लूंगी।" मिशा ने गुर्राकर कहा और आशुतोष की थाली में दो रोटी और ड़ाल दी।


"बस कर मेरी मां, वैसे ही तेरी जली रोटी देखकर भूख मर गई है।" आशुतोष ने मुस्कुराकर कहा तो सबकी हंसी छूट गई। आशुतोष ने डरते- डरते एक रोटी उठाई और सब्जी के साथ एक निवाला मुंह में ड़ाला।


"उम्म.... अच्छा है।" आशुतोष ने मुस्कुराते हुये कहा और खाने पर टूट पड़ा तो सबने भी खाने का श्रीगणेश किया, मानों उसी पर टेस्ट करने के लिये रूके हों।


"रोटी हल्की सी जली है, पर अच्छी है। कम से कम कच्ची तो नहीं। एकाध दिन में ही सीख जाओगी।" मि. श्यामसिंह ने मिशा का उस्साहवर्धन किया।


"लेकिन हमको शुगर कराने का इरादा है क्या? इतनी मीठी खीर....?" सिड़ ने खीर गटकते हुये कहा।


"आदत ड़ाल लो और जैसा मिल रहा है, चुपचाप खा लो, वरना कल से तुझे एक दाना भी नहीं मिलेगा।" मिशा गुर्राई तो सब हंसने लगे।


* * *


अगले दिन सूरज की पहली किरण के साथ ही आशुतोष और अनिका देवलगढ़ के लिये रवाना हुये। हालांकि अनिका के मन में काफी सवाल थे, जिनका जवाब वो आशुतोष से चाहती थी लेकिन उसे चुप देखकर वो भी चुप ही रही। दोनों इस वक्त हरिद्वार पहुंच चुके थे।


"कुछ खाओगी?" चंडी- पुल पहुंचकर आशुतोष ने गाड़ी रोकते हुये कहा तो अनिका ने न में गर्दन हिला दी।


आशुतोष पास की ही एक दुकान पर दौड़ा और कुछ चिप्स और कोल्ड- ड्रिंक्स लेकर आया।


"लो.... मुझे तो भूख लग रही है।" आशुतोष ने एक चिप्स और कोल्ड- ड्रिंक्स अनिका को पकड़ाई और अपना वाला चिप्स खोलकर कोल्ड- ड्रिंक गटकने लगा।


"भूख लगी है तो खाना खा लेते! चिप्स से क्या होगा?" अनिका चिप्स का पैकेट खोलते हुये मुस्कुराई।


"अरे चिप्स के साथ कोल्ड- ड्रिंक्स पीकर तो देखो। पेट भर जायेगा।" आशुतोष हंसकर बोला- "अच्छा ये बताओ कि तुम पूरे रास्ते में चुप क्यों थी?"


"तुम भी तो कुछ नहीं बोले!" अनिका ने चिप्स मुंह में ड़ालते हुये कहा।


"एक्चुअली मुझे तुमसे कुछ कहना तो था लेकिन.... हिम्मत नहीं हो रही है। क्या पता तुम कैसे रियेक्ट करो?" आशुतोष हिचकते हुये बोला।


"क्या?" अनिका उत्सुक्ता से उसकी आंखों में झांकते हुये बोली।


"वो एक्चुअली मुझे.... वो...."


"बोलो न!"


"वो एक्चुअली मुझे तुम्हें ये बताना था कि...."


"कि...."


"अघोरा तुम्हारी बलि देना चाहता है इसलिये तुम्हें ज्यादा केयरफुल रहना होगा।" आशुतोष आई कॉंटेक्ट तोड़ते हुये बोला।


"व्हट?" अनिका को ये बात सुनकर उतनी निराशा नहीं हुई जितनी अपने मन की बात न सुनकर हुई।


"हां, तुम पता नहीं किस नक्षत्र में जन्मीं हो कि तुम्हारे जरिये वो किसी राक्षस के शरीर में घुसकर राक्षसों का राजा बनना चाहता है।" आशुतोष असहज होकर बोला- "इससे उसे शरीर के साथ- साथ उस राक्षस की ताकतें भी मिल जायेंगीं।"


"वो मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मुझे भोलेनाथ पर पूरा भरोसा है।" अनिका फीकी मुस्कान लिये बोली।


"भोलेनाथ का तो पता नहीं लेकिन मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा।" आशुतोष दृढ़- प्रतिज्ञ होकर बोला।


"अच्छा....? और वो क्यो?" अनिका ने हंसी बिखेरते हुये चंचल अंदाज में पूछा।


"क्यूंकि तुम्हारे बाद मेरा मेरा ही नंबर आयेगा और मुझे अभी अपनी अनामिका के साथ जीना है।" आशुतोष मुस्कुराकर बोला और गाड़ी आगे बढ़ा दी।


* * *



करीब दो घंटे के सफर के बाद दोनों कोटद्वार पहुंचे। कोटद्वार को गढ़वाल का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। ये पहाड़ और मैदान की सीमा पर बसा एक छोटा सा कस्बा है, यहां से आगे पहाड़ शुरू हो जातें हैं। आशुतोष ने एक होटल के आगे गाड़ी खड़ी कर दी और अनिका को साथ लेकर होटल में घुस गया।


"पहले खाना खा लेते हैं, फिर आगे बढ़ेंगें।" आशुतोष ने अनिका से कहा और वेटर को दो थाली लगाने को बोला। होटल लगभग खाली था। दोनों ने सबसे पीछे वाली सीट पकड़ ली।


"अभी कितना और चलना है?"अनिका ने पूछा।


"काफी ज्यादा.... लगभग चार- पांच घंटे में तो पौड़ी पहुंचेगें। रात वहीं रूकेंगें।" आशुतोष ने अंगडाई ली।


"लेकिन पौड़ी क्यों? आई मीन हमें तो देवलगढ़ जाना है और वैसे अघोरा क्या देवलगढ़ में मिलेगा?"


"पता नहीं.... वहां कोई देवलदेेवी मंदिर है, जहां से हमें जंग की शुरूआत करनी है।" आशुतोष कुछ सोचकर बोला- "शायद अघोरा को खत्म करने का कोई हथियार मिल जाये? और यहां आगे एक मददगार भी मिलने वाला है।"


"कौन? देखो मुझे अब भी नहीं लगता कि तुम मुझे पूरी बात बता रहे हो!" अनिका आशुतोष की आंखों में झांकते हुये बोली- "तुमने बलि वाली बात भी मुझसे छुपाई थी ओर अब भी कुछ छिपा रहे हो...."


"ऐसा कुछ नहीं है जो मैं छिपा रहा हूं और तुम्हारा जानना जरूरी हो...." आशुतोष नजरें फेरते हुये बोला।


"जरूरी है या नहीं ये मुझे डिसाइड़ करने दो। पहले तुम मुझे पूरी बात बताओ।" अनिका जिद पर अड़ गई।


"ओके.... वैसे तो कई बातें हैं, लेकिन इस केस से रिलेटेड़ मीन बात ये है कि अगर एक महीने से पहले हमने अघोरा को नहीं मारा, तो स्वामी शिवदास और अच्युतानंद तुम्हें मार देंगें।" आशुतोष गुस्से में बोला।


"उससे क्या होगा? क्या ये श्राप खत्म हो जायेगा।" अनिका की आंखों में अचानक चमक सी उभरी।


"नहीं, लेकिन उन बेवकूफों को लगता है कि इससे अघोरा को उस राक्षस का शरीर नहीं मिलेगा।" आशुतोष दांत भींचते हुए बोला- "उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता है कि इससे तुम्हारी आत्मा भी उसकी कैद में चली जायेगी।"


तभी ऑर्डर लेकर लड़का आया और थाली टेबल पर रख दी। उसे देखकर दोनों चुप हो गये।


"मतलब अभी तक श्राप तोड़ने का कोई रास्ता नहीं है।" अनिका का चेहरा मुरझा गया।


"देखो मेरा एक दोस्त है, जो पैरानॉर्मल एक्टिविटीज पर रिसर्च करता है। मैंनें उससे बात की थी...." आशुतोष फुसफुसाया- "वो कह रहा था कि आम तौर पर ऐसे श्रापों के पीछे कोई दुष्ट आत्मा रहती है लेकिन इस केस में अघोरा खुद श्राप का वाहक है।"


"तो?" अनिका आगे जानने को उत्सुक थी।


"देखो.... ये सुनने में थोड़ा अजीब सा है लेकिन उसको नहीं पता कि सच में मुर्दों को जिलाने वाला कोई रिचुअल होता है या नहीं। आई मीन वो कह रहा था कि कुछेक जगहों पर ऐसे रिचुअल सुनने में आयें हैं लेकिन वो ताजी लाश के साथ परफॉर्म किये जाते हैं और उनमें तंत्र- शक्ति से किसी खास आत्मा को बुलाया जाता है...."


"हम्म...."


"तो ये केस टोटली ड़िफरेंट है। उसने कहा था कि ऐसी एनर्जीज काफी डेंजरस हो सकती हैं, लेकिन अजीब बात ये है कि अघोरा ने अब तक हमपर कोई खुला हमला नहीं किया।" आशुतोष बोला- "इसका मतलब ये है कि कोई पॉजिटिव एनर्जी या कोई बंधन है, जो उसे हमतक पहुंचने से रोक रही है।"


"तो अब वो एनर्जी ही उसे खत्म करने का रास्ता बता सकती है।" अनिका ने समझने वाले भाव से सिर हिलाया।


"लेकिन.... पहले ये पता लगाना है कि वो कोई एनर्जी है या बंधन और बंधन है तो किसने ड़ाला?" आशुतोष चकराया सा बोला- "लेकिन सबसे मुश्किल काम है अघोरा का ठिकाना ढूंढना। आई मीन हम उसे ढूंढ़ेंगें कहां?"


"हां, स्वामी जी ने भी इस बारे में कुछ नहीं बताया।" अनिका बोली।


"एक्चुअली सच कहूं तो मुझे अब उन दोनों स्वामियों पर भरोसा रहा नहीं...."आशुतोष चिढ़कर बोला- "उन्हें हमारे जीने- मरने से कोई फर्क नहीं पड़ता इसलिये अब मैंनें सोच लिया है कि आगे सब काम उनकी सलाह के बगैर ही करना है। उन्हें तो बस इस बात की चिंता है कि अघोरा को शरीर न मिल पाये।"


"वो पूरी दुनिया की भलाई का जो सोच रहे हैं।" अनिका ने आशुतोष की बात का खंडन किया।


"नहीं.... उन्हें अपनी पड़ी है। धूम्रपाद अगर जिंदा हो गया तो सबसे पहले इनकी ही लंका लगेगी। वैसे भी राक्षस इन ढोंगी साधुओं को ही पहले काटते हैं। तो बेसिकली हम इनके लिये बलि के बकरें हैं।" आशुतोष अपनी बात पर अटल रहा।


"मुझे अपनी जान की परवाह नहीं है।" अनिका दृढ़ स्वर में बोली- "अगर मेरी जान जाने से पूरी दुनिया बच सकती है तो मुझे अपनी जान देनें में कोई हर्ज नहीं है। इतने लोगों के आगे एक मेरी जान की क्या कीमत?"


"तुम्हारे लिये न सही, औरों के लिये तो है.... तुम तो अपनी जान दे दोगी लेकिन तुमसे जुड़े लोग...."


"तो क्या अपने चाहनेवालों के लिये पूरी दुनिया को खतरे में ड़ाल दूं? अगर हमें कोई रास्ता न मिला तो भी अघोरा हम दोनों को मार ही देगा, तो इससे अच्छा तो मैं पहले ही अपनी जान दे दूं। कम से कम अघोरा को शरीर तो नहीं मिलेगा।"


"तो दे दो.... कहो तो मैं अभी एक नुवान की शीशी लेकर आऊं?" आशुतोष गुस्से से बोला- "मैंनें कहा न तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा। बस मुझपर भरोसा रखो।"


अनिका को आशुतोष के गुस्से में भी मजा आ रहा था। उसका गुस्सा उसकी चिंता जाहिर कर रहा था। मुस्कुराकर बोली- "तुम इसकी चिंता क्यों कर रहे हो? अभी तो फिलहाल अघोरा का ठिकाना ढूंढना बाकी है। बाद की बाद में देख लेंगें।"


"देख लेना अगले बीस दिन के अंदर- अंदर अघोरा और उसका ये श्राप खत्म हो जायेगा।" आशुतोष दांत भींचकर बोला और हाथ धोने सिंक की तरफ बढ़ गया।


* * *



होटल का बिल चुकाकर आशुतोष और अनिका होटल से चले और थोड़ी देर सिद्धबली मंदिर में बिताने का सोच मंदिर में गए। अचानक आशुतोष मंदिर से गुम हो गया और काफी देर बाद अनिका को एक पीपल के पेड़ के पास मिला। अनिका ने काफी पूछा लेकिन वो बस मुस्कुरा कर चुप रहा और मंदिर से लौट आया। अनिका ने गौर किया कि सिद्धबली के दर्शन के बाद आशुतोष अपने में ही गुम था।


"तुम चुप क्यों हो? क्या पूरा सफर ऐसे ही खामोशी में कटेगा?" अनिका ने मुस्कुराकर पूछा। इस वक्त दोनों दुगड्डा से आगे बढ़ रहे थे।


"अब बोलने को बचा ही क्या है?" आशुतोष फीकी मुस्कान लिये बोला- "तुम मरने को तैयार हो, वो स्वामी जी मारने को तैयार हैं और मुझे अघोरा मार ही देगा तो बात करने से क्या फायदा?"


"अच्छा ठीक है। मैं जान देने की बात नहीं करूंगी लेकिन अगर अघोरा अपने मकसद में कामयाब हो गया तो?" अनिका ने एकटक आशुतोष के चेहरे की ओर देखकर कहा। मानों उसपर उभरते भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही हो।


"कम से कम मेरे रहते तो ये पॉसिबल नहीं है।" आशुतोष उसे दिलासा देते हुये बोला- "तुम्हारी हिफाजत मेरी जिम्मेदारी है। तुम्हारे पापा ने मेरे भरोसे तुम्हें मेरे साथ छोड़ा था और यकीन मानों मैं उनका भरोसा नहीं टूटने दूंगा।"


"तुम्हें लगता है कि अघोरा को हराना इतना आसान है?" अनिका आश्चर्य के साथ बोली।


"नहीं, लेकिन मुझे खुदपर भरोसा है कि ये कितना भी मुश्किल क्यों न हो, मैं कर लूंगा।" आशुतोष ने अनिका की कत्थई आंखों में झांकते हुये कहा।


तो.... एक महीने में हम जरा सा भी आगे नहीं बढ़ पाये और तुम बीस दिन में अघोरा के मसले को सुलझा लोगे?" अनिका अविश्वास पूर्वक बोली- "कैसे? तुम कुछ ज्यादा ही बड़ी बातें नहीं कर रहे?"


"अक्सर लोग अपने घमंड पर चोट नहीं सकते हैं। हमें अघोरा का ठिकाना नहीं पता लेकिन उस चूहे को तो बिल से बाहर निकाल ही सकते हैं।" आशुतोष कुटिल मुस्कान लिये बोला।


"मतलब?"


"जानती हो, उन स्वामियों को लगता है कि अघोरा तुम्हारी बलि देकर धूम्रपाद का शरीर हासिल करना चाहता है, लेकिन असल में उसका मकसद कुछ और ही है।"


"और वो मकसद क्या है?" अनिका को लगा कि आशुतोष ये बस इसलिये कह रहा है ताकि वो अपनी कुर्बानी देने का ख्याल छोड़ दे।


"जरा सोचो़.... धूम्रपाद राक्षस को मरे कितने साल हो गये होगें? अब राक्षसों में भी तो अंतिम- संस्कार होता ही होगा तो धूम्रपाद का शरीर अब तक सेफ कैसे है?"


"तुम कहना क्या चाहते हो?" अनिका चौंककर बोली।


"असल में अघोरा तुम्हारे खून से धूम्रपाद के शरीर को दुबारा बनाना चाहता है और फिर उस शरीर को पाकर वो तुमसे शादी करेगा।" आशुतोष हंसकर बोला- "मतलब समझ रही हो? उसे बस तुम्हारे खून की कुछ बूंदे चाहिये जिसके लिये तुम्हें मारने की जरूरत नहीं है। और बाद में वो तुमसे शादी करके नवग्रह- शक्तियों को अपने वश में कर लेगा।"


"व्हट रबिश....?"अनिका अविश्वासपूर्वक गुस्से से बोली- "तुम्हें किसने बताया?"


"नीलांजन ने!" आशुतोष बोला- "और उन्होनें अघोरा को ढूंढने का तरीका भी बता दिया।"


"वेट.... वेट.... वेट...." अनिका की कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था- "तुम कहना चाहते हो कि किसी नीलांजन ने तुम्हें ये सब बताया और अघोरा को ढूंढने का तरीका भी बता दिया? पर पहले ये बताओ कि ये नीलांजन है कौन?"


"ये तो मैं भी नहीं जानता...." आशुतोष बुदबुदाया और अनिका से बोला- "पता नहीं कौन था? वहीं मंदिर में मुझे मिला और ये सब बताया।"


"और तुम उस पर ऐसे ही भरोसा कर सकते हो? जानते हो न अघोरा...."


"कमऑन अनिका.... क्या तुमने कभी सुना है कि भूत मंदिर में आ सकते हैं? और वो भी हनुमान के?"


"लेकिन उनका इन सब से क्या लेना- देना?" अनिका चकराई सी बोली।


"पता नहीं.... लेकिन शायद उन्हें पैरानॉर्मल केसेज में इंट्रेस्ट है।" आशुतोष बोला- "पता नहीं कैसे मेरी दिक्कत का पता चला और मदद करने लगे। मंदिर में उन्हीं से बात करने तो तुम्हें अकेला छोड़ आया था।"


"और क्या रास्ता बताया है इन नीलांजन जी ने?" अनिका ने व्यंग्यपूर्वक कहा। उसे अब भी आशुतोष की बातों पर यकीन नहीं आया।


"वो भी बताऊंगा लेकिन पहले ये बताओ कि क्या तुम किसी से प्यार करती हो? या तुम्हारा कोई ब्वॉयफ्रेंड है?" आशुतोष ने पूछा तो अनिका हड़बड़ा गई। बोली- "व्हट? इनका इन सबसे क्या लेना- देना?"


"लेना- देना है तभी तो पूछ रहा हूं।" आशुतोष व्यग्रता से बोला- "देखो मैनें सोचा नहीं था कि ये इस तरह होगा लेकिन शायद अब कोई दूसरा रास्ता ही नहीं है।"


"तुम किस बारे में बात कर रहे हो?"


"देखो! मुझे तुमसे.... वो नीलांजन ने कहा था कि...."


"क्या? मैं सुन रही हूं...."


"देखो! अगर तुम किसी से प्यार करती हो तो उसे पौड़ी बुला लो।" आशुतोष ने कहा तो अनिका आग्नेय नेत्रों से उसकी तरफ देखने लगी। आशुतोष बोला- "अघोरा तक पहुंचने का यही एक रास्ता है कि उसके प्लान पर पानी फेर दिया जाये इसलिये नीलांजन ने कहा था कि अगर तुम्हारी शादी हो जाये तो...."


"मैं किसी से प्यार नहीं करती और तुम्हें क्या लगता है कि अगर करती भी तो क्या बिना अपने मां- बाप के शादी कर लूंगी? वो भी इस स्थिति में?" अनिका गुस्से में बोली।


"लेकिन इसके अलावा कोई रास्ता भी तो नहीं है। और वैसे भी कौन सा अघोरा ये शादी होने देगा?" आशुतोष एक गहरी सांस छोड़कर बोला- "ओके फाइन.... देखो.... मैं कभी नहीं चाहता था कि ये ऐसे हो लेकिन...."


"देखो मुझे नहीं पता कि तुम मेरे बारे में क्या सोचोगी? लेकिन.... सच तो ये है कि मैं तुमसे प्यार करता हूं।" आशुतोष ने कहा तो अनिका ने कहर भरी नजरों से उसे देखा- "मैं चाहता था कि इन सब झंझटों से निकलकर तुमसे अपने दिल की बात कहता लेकिन...."


"लेकिन तुम तो अनामिका से प्यार करते हो न!" अनिका की आवाज में व्यंग्य और गुस्सा था।


"अनामिका भी तो तुम ही हो न! जिस दिन तुमने मेरी गाड़ी ठोकी थी, उसी दिन से तुम मेरे दिल में हो।" आशुतोष फीकेपन से मुस्कुराया- "उस दिन के बाद तुम्हें रोज पागलों की तरह देहरादून की सड़कों पर ढूंढता था। तुम्हारा एक स्कैच बनाकर तुमसे बातें करता था और नाम नहीं पता था तो अनामिका कहता था। एक दिन वो स्कैच सिड़ और मिशा के हाथ लग गया और वो मुझे तुमसे मिलाने ले गये।"


"लेकिन उसी दिन अघोरा ने वो एक्सीडेंट करवा दिया।" आशुतोष हंसकर बोला- "लेकिन अनजाने में ही वो तुम्हें मेरे करीब ले आया। उसके बाद इस श्राप का राज खुला और तबसे इसे तोड़ने हम साथ हैं।"


"तुम्हें कैसे मालूम कि वो एक्सीडेंट अघोरा ने करवाया था?" अनिका चौंकी।


"क्यूंकि ट्रक बिना ड्राइवर के चल रहा था।" आशुतोष बोला- "अब फैसला तुम्हारा है कि क्या तुम मेरे साथ मंडप में बैठोगी? वैसे भी अघोरा इस शादी को जरूर रोकेगा तो बेसिकली ये शादी सिर्फ अघोरा का पता लगाने को एक जाल है।"


"और अगर शादी हो गई तो?"


"तो मेरी तो लॉटरी लग जायेगी पर वो शायद हमारा आखिरी दिन होगा क्यूंकि अघोरा का शाप तो तुम भी जानती ही हो।" आशुतोष हंसते हुये बोला- "तो अब कहो कि तुम्हारा क्या फैसला है?"


"ठीक है, अगर तुम्हें नीलांजन पर इतना ही भरोसा है और तुम्हें ये ठीक लगता है तो मैं तैयार हूं। वैसे भी अगर शादी करते ही मर भी गई तो भी अघोरा का इरादा पूरा नहीं होगा।" अनिका बोली- "लेकिन मेरी एक शर्त है।"


"शर्त? क्या शर्त है?" अब चौंकने की बारी आशुतोष की थी।


"अगर प्लान कामयाब रहा और ये श्राप टूट गया तो...."


"तो?"


"तो फिर तुम मेरे पिताजी से हमारी शादी के बारे में बात करोगे।" अनिका ने शर्माते हुये कहा।


"ठीक है.... क्या? हमारी शादी?" आशुतोष को दूसरा झटका लगा। उसे अपने कानों सुने पर यकीन नहीं आ रहा था। लेकिन अनिका ने जवाब देने की बजाय अपना मुंह हाथों में छिपा लिया।


"बेटे अघोरा.... अब अपनी उल्टी गिनती शुरू कर दे।" आशुतोष हंसकर बोला और गाड़ी की स्पीड़ बढ़ा दी



* * *



क्रमशः



----अव्यक्त



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1 Comments

Pamela

02-Feb-2022 01:56 AM

Bahut... Achchi khani likhte hn aap

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